शरद पूर्णिमा की रात आकाश से अमृत वर्षा की बात शास्त्रों में की गई है। इस दिन लक्ष्मी पूजा के अलावा नैवेध को भी चांद की रोशनी में रखने का विधान है।
दीपावली के ठीक 15 दिन पहले शरद पूर्णिमा आती है। शास्त्रों के अनुसार शरद पूर्णिमा की रात्रि को चंद्रमा की किरणों के साथ अमृत बरसता है। इस रात धन और उन्नति की देवी लक्ष्मी पृथ्वीलोक का दौरा करती हैं और अनुकूल जगह पाकर वहां सुख समृद्धि का आशीर्वाद देती है। सूर्य के बाद चंद्रमा को सर्वाधिक प्रभावशाली ग्रह माना गया है। यदि किसी पर चंद्रमा कुपित हो, तो उसके लिए शरद पूर्णिमा का महत्व बढ़ जाता है। यह जन जन के लिए सुख एवं स्वास्थ्यवर्धक पलों की कामना करने का शुभ समय होता है। ज्योतिष के अनुसार चैत्र माह में पूर्णिमा के दिन पूर्ण चंद्रमा का दर्शन होता है। पूर्णिमा की रात चंद्र को प्रसन्न करने के लिए अन्न से भरा घड़ा दान दिया जाता है। अश्विन शरद पूर्णिमा स्वास्थ्य की दृष्टि से बहुत ही महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन माताएं अपनी संतान की दीर्घायु तथा स्वास्थ्य लाभ के लिए व्रत एवं दान करती हैं। इस दिन चंद्रमा पृथ्वी के अत्यंत समीप आ जाता है। इसी रात को चांद की रोशनी में वैद्यगढ़ रोग नाशक तथा स्वास्थ्यवर्धक औषधियों के योग तैयार करते हैं। खासतौर पर दमे के रोगियों की जड़ी-बूटियों वाली दवाएं रात की चांद की रोशनी में रखकर सुबह खिलाई जाती है। जिनमें रोगियों को लाभ होता है। सिर दर्द जुकाम, खांसी कफ जनित रोगों से मुक्ति के लिए आज के दिन खीर, घी, चीनी से मिश्रित दवाएं चांदनी में रखकर बासी खाने का विधान है।
(1) चंद्रोदय के समय और चांदी या तांबे के लोटे में जल भरकर अर्घ दें और अपने स्वास्थ्य लाभ की प्रार्थना करें।
(2) ओम चन्द्रमसे नमः मंत्र का कम से कम 11 बार उच्चारण करें।
(3) चांदी के दीप में शुद्ध घी की बाती से चंद्रमा की श्रद्धा पूर्वक आरती उतारे।
(4) नेत्र रोगों से पीड़ित व्यक्ति आज की रात चांदनी में सुई में धागा डालने का प्रयोग कई बार दोहराएं इस से नेत्र में वृद्धि होती है